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गुमनाम पन्ने……

Yuva
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प्रिये पाठको ये पंक्तियाँ मेरे द्वारा लिखी हुई नहीं है लेकिन एक पुस्तक जो १९६७ में बिजनौर में हुए एक कवि सम्मलेन की है जो मुझे मिली, लेकिन लेखक का नाम कुछ स्पष्ट नहीं है इसलिए इन गुमनाम पन्नों का प्रथम पृष्ठ, मैं आप लोगो के समक्ष प्रस्तुत करता हूँ…..

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तुम्हारे प्यार को लिखकर सहजता हूँ मैं
उसको अखबारों में छपने भी भेजता हूँ मैं
ऐसा लगता कोई गुनाह कर रहा हूँ मैं
क्योंकि अपने कुंवारे सपनों को बेचता हूँ मैं
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दूर तुमसे हूँ मगर दूर नहीं हो सकता
प्यार की राह में मजबूर नहीं हो सकता
तुम्हारी आँख का आंसू तो मै बन सकता हूँ
तुम्हारी मांग का सिन्दूर नहीं हो सकता
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